अष्टांग योग: एक पूर्ण शारीरिक और मानसिक अभ्यास

अष्टांग योग का परिचय – Ashtanga Yoga In Hindi

अष्टांग योग एक प्राचीन योग प्रणाली है जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को सुधारने के लिए विकसित की गई है। पतंजलि अष्टांग योग सूत्र एक प्राचीन योग शास्त्र है जो आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह योग सूत्र पहले से ही विश्व में बहुत प्रसिद्ध हैं और इसे पतंजलि महर्षि ने लिखा है।इसका शास्त्रीय नाम “अष्टांग योग विधि” है। यह योग प्रणाली शरीर के अष्टांगों (अंगों) पर आधारित है, जिन्हें आसन, प्राणायाम, ध्यान और धारणा कहा जाता है। इन अष्टांगों का संयोजन शरीर, मन और आत्मा के बीच संतुलन को स्थापित करने में मदद करता है।

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अष्टांग योग क्या है? – What Is Ashtanga Yoga in Hindi

अष्टांग योग एक प्राचीन योग पद्धति है जो शरीर, मन और आत्मा के विकास और संतुलन को प्रोत्साहित करती है। इस योग पद्धति का विकास महर्षि पतञ्जलि ने किया था और यह भारतीय योग दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अष्टांग योग का अर्थ होता है ‘आठ अंगों वाला योग’ जिसे आठ भंगियों में विभाजित किया जाता है। इन आठ अंगों के माध्यम से योगी शरीर, मन और आत्मा के साथ संयम और सम्पूर्णता की स्थिति में पहुंचता है।

अष्टांग योग के अंग – 8 Limbs Of Ashtanga Yoga in Hindi

अष्टांग योग में आठ अंग होते हैं जो योगी को एक संपूर्ण अनुभव प्रदान करते हैं। ये अंग हैं:

  1. यम

    यम नियम योगी को अपने व्यवहार और संबंधों को संयमित रखने के लिए सिखाते हैं। ये पाँच नियम हैं:

    • अहिंसा: योगी को अहिंसा का पालन करना चाहिए, यानी दूसरों को किसी भी रूप में चोट नहीं पहुंचाना।
    • सत्य: योगी को सत्य बोलना चाहिए और अपने वचनों पर पक्का खड़ा रहना चाहिए।
    • अस्तेय: योगी को चोरी नहीं करनी चाहिए और दूसरों की संपत्ति का आपहरण नहीं करना चाहिए।
    • ब्रह्मचर्य: योगी को अपनी इंद्रियों को संयमित करना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
    • अपरिग्रह: योगी को अपने वांछित वस्त्र, भोजन, और संपत्ति को वश में नहीं रखना चाहिए।
  2. नियम

    नियम नियम योगी को अपने शरीर और मन को संयमित रखने के लिए सिखाते हैं। ये भी पाँच नियम हैं:

    • शौच: योगी को अपने शरीर और मन को शुद्ध रखना चाहिए।
    • संतोष: योगी को संतोष रखना चाहिए, यानी वह जो कुछ भी प्राप्त करता है उसे पूर्णतः स्वीकार करना चाहिए।
    • तपस: योगी को तपस्या करनी चाहिए, यानी उसे अपने शरीर को नियंत्रित करने के लिए ध्यान और तपस्या करनी चाहिए।
    • स्वाध्याय: योगी को अपने अंतरंग ज्ञान को बढ़ाने के लिए स्वाध्याय करना चाहिए।
    • ईश्वरप्रणिधान: योगी को ईश्वर के प्रति श्रद्धा और समर्पण रखना चाहिए।
  3. आसन – आसन योग के तीसरे अंग हैं और इसका मतलब होता है ‘स्थिर और सुखी आसन’। आसन योगी को शरीर को स्थिर और सुविधाजनक बनाने के लिए सिखाते हैं। ये विभिन्न शारीरिक पोज़ या आसन हो सकते हैं जो शरीर के विभिन्न हिस्सों को संयमित करने में मदद करते हैं। आसन का अभ्यास शरीर की लचीलापन और संतुलन को बढ़ाता है और ध्यान को स्थिर और निरंतर बनाता है। योगी आसनों के माध्यम से शरीर को स्थिर और सुखी बनाकर मन को शांत करता है। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक स्थिरता और मानसिक शांति को प्राप्त करना है। कुछ प्रमुख योगासन हैं सुर्यनमस्कार, त्रिकोणासन, भुजंगासन, पश्चिमोत्तानासन, ताड़ासन, वृक्षासन, उत्थित त्रिकोणासन और शवासन।
  4. प्राणायाम – प्राणायाम योगी को श्वास के माध्यम से अपने प्राण या ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए सिखाते हैं। इसके माध्यम से योगी अपनी श्वास की गति, समय और दीर्घता को नियंत्रित कर सकता है और अपनी ऊर्जा को शांत, स्थिर और संतुलित बना सकता है। प्राणायाम श्वास को नियंत्रित करने का अभ्यास है। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक और मानसिक ऊर्जा को नियंत्रित करना है। प्राणायाम के अंतर्गत अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति और उज्जायी श्वासायाम शामिल होते हैं।
  5. प्रत्याहार – प्रत्याहार योग का पांचवां अंग है और इसका मतलब होता है ‘इंद्रियों का अवाहन’। प्रत्याहार में योगी अपने मन को इंद्रियों के विषयों से हटाकर अपने आंतरिक अनुभवों के आधार पर जीने की क्षमता विकसित करता है। प्रत्याहार योगी को अपने इंद्रियों को बाहरी प्रकृति से अलग करने के लिए सिखाते हैं। ये इंद्रियों को संयमित करने और मन को नियंत्रित करने में मदद करता है। प्रत्याहार संवेदना को अपने शरीर और मन से वश में करने का अभ्यास है। इसका मुख्य उद्देश्य इंद्रियों को बाहरी प्रवृत्तियों से अलग करना है।
  6. धारणा – धारणा योग का छठवां अंग है और इसका मतलब होता है ‘मन का एकाग्रता’। धारणा में योगी अपने मन को एक विषय पर स्थिर करता है और उसे एकाग्रता में रखता है। इससे मन की चंचलता कम होती है और मन का एकाग्रता विकसित होता है। ये ध्यान की प्रारंभिक अवस्था होती है जिसमें योगी अपने मन को एक विशेष विषय पर ध्यान केंद्रित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य मन को शांत करना और विचारों को नियंत्रित करना है।
  7. ध्यान – ध्यान योग का सातवां अंग है और इसका मतलब होता है ‘मन की स्थिरता’। ध्यान में योगी अपने मन को एक विषय पर स्थिर रखता है और उसे गहराई से अनुभव करता है। यह अवस्था ध्यान की गहराई और स्थिरता को विकसित करती है। ध्यान योगी को उच्चस्तरीय मानसिक एकाग्रता और अवधारणा में स्थिरता के लिए सिखाते हैं। ये मन को एक विषय पर एकाग्र करने की अवस्था होती है और योगी को अपनी आत्मा के साथ एकता महसूस कराती है। इसका मुख्य उद्देश्य मन को शांत करना और आत्मा के साथ संयोग स्थापित करना है।
  8. समाधि – समाधि योग का आठवां और अंतिम अंग है और इसका मतलब होता है ‘पूर्णता की स्थिति’। समाधि में योगी अपने आप को संपूर्णता और एकता की स्थिति में अनुभव करता है। यह अवस्था योगी को मुक्ति, आनंद और आत्म-साक्षात्कार का अनुभव कराती है। समाधि योगी को अपने अंतरंग ज्ञान और आत्मा के साथ पूर्णतः एक होने के लिए सिखाते हैं। ये योग की सबसे उच्च स्थिति होती है जहां योगी अपनी आत्मा को पहचानता है और अपने अस्तित्व को वास्तविक रूप से अनुभव करता है। समाधि एक अवस्था है जिसमें ध्यान का पूर्ण समावेश होता है। इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा के साथ पूर्ण संयोग स्थापित करना है।

अष्टांग योग के लाभ – Benefit of Ashtanga Yoga In Hindi

  • योग एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करता है। अष्टांग योग एक ऐसा योग प्रणाली है जिसमें आठ अंगों का विकास किया जाता है और इसके अंगों को अनुसरण करने से एक व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त कर सकता है। अष्टांग योग का नियमित अभ्यास करने से शरीर, मन और आत्मा को अनेक लाभ मिलते हैं। कुछ मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

1. शारीरिक लाभ:

अष्टांग योग व्यायाम, श्वासायाम, आसन और ध्यान के माध्यम से शारीरिक लाभ प्रदान करता है। योग आसनों के प्रयोग से शरीर की लचीलापन बढ़ती है, मांसपेशियों को मजबूत बनाता है, संतुलित वजन को बनाए रखता है और शारीरिक दर्द को कम करता है। योग के प्रयोग से तंदुरुस्त और सुंदर त्वचा, बालों की गुणवत्ता में सुधार, और शरीर की प्राकृतिक शक्ति का विकास होता है।

2. मानसिक लाभ:

अष्टांग योग मन को शांत, स्थिर और एकाग्र करने का एक अद्वितीय तरीका है। योग ध्यान के माध्यम से मन को शांत करता है और तनाव को कम करता है। योग के नियमित अभ्यास से मानसिक तनाव, चिंता और उदासीनता को कम किया जा सकता है। योग ध्यान के माध्यम से मन को शक्तिशाली और स्पष्ट बनाता है, जो एक व्यक्ति को स्वयं को बेहतर ढंग से संचालित करने की क्षमता प्रदान करता है।

3. आध्यात्मिक लाभ:

अष्टांग योग आध्यात्मिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम है। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने आंतरिक स्वरूप को समझता है और अपनी आत्मा के साथ संवाद करने की क्षमता विकसित करता है। योग ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के मुद्दों को समझता है और उन्हें सकारात्मकता के साथ समाधान करने की क्षमता प्राप्त करता है। योग के अभ्यास से व्यक्ति अपने अस्तित्व को गहराई से अनुभव करता है और अपने जीवन को एक नये और उच्चतर स्तर पर जीने की क्षमता प्राप्त करता है।

अष्टांग योग करते समय और करने के बाद क्या क्या सावधानी रखनी चाहिए – Ashtanga Yoga In Hindi

अष्टांग योग एक प्राचीन योग प्रक्रिया है जो शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करने के लिए जानी जाती है। इसके अंतर्गत आठ अंग होते हैं जिन्हें एक सिरीज़ के रूप में किया जाता है। योग करने से पहले और योग करने के बाद कुछ सावधानियां रखना आवश्यक होता है ताकि आपके शरीर, मन और आत्मा को कोई नुकसान न हो।

योग करने से पहले की सावधानियां:

  • यदि आप को कोई बीमारी हो तो अपने चिकित्स्क (डॉक्टर) से सलाह अवश्य करे। 
  • योग करने से पहले अपने शरीर को गर्म करें। सुबह के समय योग करना अच्छा रहता है क्योंकि आपके शरीर में उष्णता की आवश्यकता होती है।
  • खाना खाने के बाद योग न करें। खाना खाने के बाद कम से कम दो घंटे का अंतराल रखें।
  • योग के लिए आरामपूर्वक जगह चुनें। यह आपको शांति और स्थिरता महसूस कराएगी।
  • अष्टांग योग करने से पहले, शरीर को गर्म रखने के लिए स्नान करें और सूर्य नमस्कार जैसे प्राणायाम और ध्यान के साथ शुरुआत करें।
  • यदि कोई व्यक्ति किसी खास रोग या स्थिति में है, तो उन्हें पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।
  • योग किसी योग गुरु की देखरेख में ही करना चाहिए।  

योग करने के बाद की सावधानियां:

  • योग के तुरन्त बाद ठंडी चीजें न खाएं। योग करने के बाद आपके शरीर की तापमान बढ़ी होती है, इसलिए आपको ठंडी चीजें खाने से बचना चाहिए।
  • योग के बाद आराम करें। योग करने के बाद आपको अपने शरीर को धीरे-धीरे ठंडा करने के लिए विश्राम की आवश्यकता होती है।
  • योग करते समय और उसके बाद सही आहार लेना बहुत महत्वपूर्ण है। आहार में पौष्टिक तत्वों की अच्छी मात्रा शामिल करें और तला हुआ, मसालेदार और तले हुए खाने से बचें।
  • योग करने के बाद अभ्यास करें और नए योग आसनों को सीखें। नए योग आसनों को सीखने से शरीर के ऊर्जा को बढ़ाने में मदद मिलती है और संतुलन को बनाए रखती है।

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FAQ

1. अष्टांग योग क्या है?

अष्टांग योग संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘आठ अंगों वाला योग’ जिसे आठ भंगियों में विभाजित किया जाता है। इन आठ अंगों ( जिनमें आसन, प्राणायाम, ध्यान और धारणा शामिल होते हैं) के माध्यम से योगी शरीर, मन और आत्मा के साथ संयम और सम्पूर्णता की स्थिति में पहुंचता है। अष्टांग योग के माध्यम से शरीर, मन और आत्मा का संतुलन स्थापित किया जाता है।

2. अष्टांग योग के क्या लाभ हैं?

अष्टांग योग करने से शरीर की सुचारू गति बढ़ती है, मस्तिष्क की क्षमता में सुधार होता है और मानसिक स्थिति में सुधार होता है। यह योग प्रथा शरीर को लचीला बनाती है और तनाव को कम करती है। इसके साथ ही, अष्टांग योग शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है, श्वास-प्रश्वास की गति को संतुलित करता है और शारीरिक दुर्बलता को कम करता है।

3. अष्टांग योग कैसे किया जाता है?

अष्टांग योग का अभ्यास एक नियमित रूप से किया जाना चाहिए। इसमें आसन, प्राणायाम और ध्यान के अभ्यास को सम्मिलित किया जाता है। यह योग दिन की शुरुआत में किया जाता है और नियमित अभ्यास करने से इसके लाभ अधिक होते हैं।

4. क्या अष्टांग योग सभी के लिए है?

हां, अष्टांग योग सभी लोगों के लिए है। यह योग हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद है और इसे किसी भी शारीरिक क्षमता या अनुभव की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, यदि कोई व्यक्ति किसी खास रोग या स्थिति में है, तो उन्हें पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

5. अष्टांग योग की विधि क्या है?

अष्टांग योग की विधि में आठ अंग होते हैं जिनमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि शामिल होते हैं। ये अंग एक सुसंगत क्रम में अभ्यास किए जाते हैं और इससे शरीर, मन और आत्मा का संतुलन स्थापित होता है।

संक्षेप में कहें तो,

अष्टांग योग शरीर, मन और आत्मा के लिए संपूर्ण स्वास्थ्य का संग्रह है। इसके अंगों को नियमित रूप से अभ्यास करने से शारीरिक लाभ, मानसिक लाभ और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं। योग का अभ्यास अवश्य करें और अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी और पूर्णता से भर दें।

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